राष्ट्रीय जन सुनवाई की रिपोर्ट
हर बार जब राष्ट्रीय राजधानी में किसी मेगा आयोजन की घोषणा होती है, तो शहर के कामगार और गरीब तबकों में एक गहरी अनिश्चितता पसर जाती है। शहर की कामकाजी जनता की स्मृतियां वास्तव में ऐसी है कि वे एक भव्य आयोजन से दूसरे आयोजन के बीच संवेदनशीलता के साये मे बसते हैं। जबकि इन आयोजनों के बारे में ऊपरी स्तर पर बहुत सारी बातें होती हैं, जिसमें अधिकांश तरीकों से आधारभूत सुधार और आधुनिक सुविधाएं शामिल होती हैं, तो ऐसी चमक की लागत गरीब और कामकाजी शहरी जनता को चुकानी पड़ती है जो अनौपचारिक बसाहटों या झोपड़ी में रहती है। आमतौर पर किसी को उसके निवास स्थान से बेदखल कर देने का आदेश कुछ सहानुभूति पैदा कर सकता है, लेकिन ऐसे मेगा आयोजनों के साथ “राष्ट्रीय गर्व” जोड़ दिया गया है। तथाकथित राष्ट्र सम्मान में गरीब जनता को बलपूर्वक बेदखल करने को मान्यता प्राप्त हो जाती है। जनता के मनसिकता में, खासकर शहरी मध्यम वर्ग और सम्पन्न लोगों के बीच, देश को सबसे अच्छे रूप में प्रदर्शित करने के लिए, “अनुचित” लोगों को या तो बाहर निकाल दिया जाना चाहिए या उन्हें अदृश्य बनाया जाना चाहिए।
ऐसे आयोजन भी शहरों का मूल रूप से पुनर्निर्माण करने के लिए स्वीकार्य बहानों के रूप में इस्तेमाल किये जाते हैं, जो गरीबों के हितों के लिए हानिकारक हो सकते हैं। हालात इतने दयनीय हैं की कभी-कभी झोपड़ी में रहने वाले अपने आप को भाग्यशाली महसूस करते हैं कि वे बुलडोजर से बचे हुए हैं, अगर उनकी बस्ती को एक अस्थायी दीवार बनाकर नज़रों से छुपा दिया जाता है। मूलभूत ज़रूरतों का अभाव – जैसे किराये पर उपलब्ध आवास की कमी, हमारे आधुनिक शहरों का असत्कारशील स्वभाव, उपलब्ध नौकरियों की अनिश्चितता – अधिकारियों को ऐसे “सफाई” अभियानों को चलाने से नहीं रोकता है। राजधानी इस प्रक्रिया से पहले भी गुजर चुकी है, जब अस्सी के दशक में एशियाड और हाल की स्मृति में कॉमनवेल्थ गेम्स के साथ सौंदर्यीकरण परियोजनाओं की मार गरीब नागरिकों पर पड़ी और प्रशासनिक ढांचा का भ्रष्टाचार और अमानवीय व्यवहार एक बार पुनः प्रदर्शित हुआ।
इस बार यह बेदखली अभियान भारत द्वारा आयोजित किए जा रहे जी 20 सम्मेलन के नाम पर शुरू किया जा रहा है। पूरी परियोजना को विश्व मंच पर भारत के आर्थिक विकास की शक्ति के रूप में प्रस्तुत करने के लिए एक विशाल जनसम्पर्क अभ्यास में बदल दिया गया है। “सौंदर्यीकरण अभियान”, “अतिक्रमणों की साफ़-सफ़ाई”, “यमुना की बाढ़प्रवाही मैदानों का संरक्षण” या “स्मारकों के संरक्षण ” के नाम पर, झोपड़ी और बसेरे शहर भर में उखाड़ दिए जा रहे हैं। तुगलकाबाद और महरौली में ध्वस्त की गयी बस्तियां संभवतः जी20 अधिवक्ताओं के लिए आयोजित की जा रही हेरिटेज वॉक से जुड़ी हो सकती है। तुगलकाबाद में ध्वस्त की गयी बस्ती, सबसे बड़ी में से एक है, जहां 2,50,000 से अधिक पुरुष, महिला और बच्चों को बेघर कर दिया है। इस तरह के ध्वस्तीकरण को “अतिक्रमण” का नाम देकर न्यायोचित ठहराया जाता है धता को बलपूर्वक हटाने का कारण दिया जाता है। लेकिन ऐसे तर्क तब कभी नहीं उठाए जाते हैं जब संपन्न व्यक्तियों के अवैध आवासीय क्षेत्रों या अनधिकृत भूमि पर बने बड़े होटलों की बात आती है। लेकिन बेघर लोगों के तथाकथित गैर-क़ानूनी बसेरों की अवैधता एकतरफ़ा राज्य की असफलताओं का परिणाम है, जिसमें भूमि और संसाधनों में सस्ते सामाजिक आवास में निवेश नहीं होता। और इस बार तो राष्ट्रीय राजधानी में, अवासीय लोगों के लिए राज्य सरकार के द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बनाए गए आश्रयों को नष्ट कर दिया गया है; यहां तो “अवैधता” का तर्क भी लागू नहीं होता है।
इन सवालों की पड़ताल करने के लिए नई दिल्ली और अन्य शहरों में हालिया निष्कासन अभियानों के प्रभावों और पहलुओं के बारे में समग्र विचार प्राप्त करने के लिए, G20 सम्मेलन से पहले 22 मई 2023 को सुरजीत भवन, नई दिल्ली में एक जन सुनवाई का आयोजन हुआ। जूरी के सदस्य हर्ष मंडर, पमेला फिलिपोस, बीना पल्लिकल, आनंद याग्निक और टिकेंदर पंवार थे। विभिन्न क्षेत्रों से संगठनों के एक समूह के द्वारा आयोजित की गई इस जन सुनवाई ने एक अवसर प्रदान किया जहां विभिन्न निष्कासितों – किसानों, सड़क विक्रेताओं, कचरा चुनने वालों, बस्तियों के निवासियों – के साक्ष्य सुनने का मौका मिला, साथ ही वकीलों और कार्यकर्ताओं को भी विचार रखने का मौका मिला। इस जन सुनवाई ने चमकीली सौंदर्यिक भव्यता के पीछे छिपी कठोरता की दास्तान को उजागर किया।
जन सुनवायी पर पूरी रिपोर्ट यहाँ पढिए: G 20 Public Hearing-Hindi Report
